अपने सपनों को बुनती उत्तराखंड की बेटी, बकरी चराने के साथ कर रही पढ़ाई, फोटो ने मोह लिया मन

उत्तराखंड सरकार सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की तरह पढ़ाई शुरु करने का दावा कर रही है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने तो अपने गृह क्षेत्र में अटल उत्कृष्ट विद्यालय के रूप में चयनित सरकारी स्कूल का विधिवत शुभारंभ किया। इसी के साथ शिक्षा मंत्री ने अटल उत्कृष्ट विद्यालय के रूप में चयनित राजकीय बालिका इंटर कॉलेज रामनगर में भी विधिवत शुभारंभ किया औऱ दावा किया कि इन स्कूलों में गरीब से गरीब बच्चों को भी प्राइवेट स्कूलों की तरह सुविधा और पढ़ाई कराई जाएगी। लेकिन पहाड़ की तस्वीरें अलग है।यहां बच्चों को घर का काम भी करना पड़ता है क्योंकि उनके पिता की इतनी कमाई नहीं होती कि वो अपने बच्चो को हर सपने को पूरा करे। ऑनलाइन रंगीन फोन ला सके। नए कपड़े दिला सके। बता दें कि सोशल मीडिया पर एक बच्ची की फोटो वायरल हो रही है जिसमे वो सड़क किनारे बैठे पढ़ाई कर रही है। जिसके कपड़े फटे हुए हैं और हाथ में कॉपी है।
करे भी तो क्या करें। घर का काम भी संभालना है क्योंकि माता-पिता के पास ऐसा कुछ काम नहीं है कि वो परिवार का पेट पाल सके। इसलिए छोट छोटे बच्चे भी माता पिता की मदद करते हैं और बकरियां चराते हैं। इस बच्ची ने भी पिता का भार अपने पर लेने की सोची और निकल पड़ी बकरी चराने लेकिन दिन में पढ़ाई करने का जज्बा भी था इसलिए साथ में कितान कॉपी पेन भी ले गई। बकरियां घास चरती रही और ल़ड़की वहीं बकरियों पर नजर बनाए पढ़ती भी रही। इस तस्वीर को अपने कैमरे में कैद किया किसी फोटो ग्राफर ने। जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है।
वो एंड्रॉइड फोन लाएं और नेट का रिचार्ज करें?
कोरोना के कहर के चलते स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में अक्सर नेटवर्क की दिक्कत होती है। साथ ही बारिके समय तो हाल और भी बुरा रहता है। वहीं जिसके पास खाने के लाले पड़े हैं वो एंड्रोइड फोन और नेट का रिचार्ज कैसे करें। सरकार ने ऑनलाइन क्लास तो शुरु कर दी लेकिन क्या कभी गांव के बच्चों के बारे में सोचा है वो कहां से रंगीन फोन लाएंगे। वो कहां से कैसे महंगा रिचार्ज कराएंगे और कैसी पढ़ेंगी।
फोटो ग्राफर का नाम है पवन नेगी। उन्होंने अपने फेसबुक वॉल में लिखा कि सम्मान करता हूँ उत्तराखंड की इस बेटी का : थत्यूड़ टिहरी गढ़वाल की फ़ोटो मेरे द्वारा एक यात्रा के दौरान ली गई, पशुओं को चराने आई बालिका इस हालात में सड़क किनारे पढ़ाई करते हुए। तरस इस बच्ची के हालात में नहीं खा रहा था तरस तो उस जिम्मेदार सिस्टम में खा रहा था जो इस बच्चे के हिस्से का अधिकार अपने बच्चों को शहरों के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा रहा था । थत्यूड़ से यमुनोत्री मार्ग के लिए जाते हुए ये बालिका सड़क किनारे अपने सपनो को पूरा करने के लिए पहाड़ी शिक्षा तंत्र को भेदती हुई । उत्तराखंड के नेताओ व अधिकारियों के जोभी अच्छे दिन हो पर इस बालिका का जज्बा एक दिन उत्तराखंड का नाम जरूर रोशन करेगा। उत्तराखंड के हालात केवल ऊपरी सतह पर बदले है पहाड़ पर झांकने वाली नज़रोंं का इंतजार आज भी उम्मीद लगाए सड़क किनारे युही पढ़ाई करते हुए न जाने कितने मासूम कर रहे होंगे। इन्हें अगर कोई सरकार बिजली, पानी और शिक्षा फ्री में देदे तो भले ही हम शहरियों को कोई फर्क न पड़े पर उस फ्री की बचत से क्या पता कोई अपने बच्चों को कपड़े दिला सके

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