देहरादून उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने रविवार को मुख्यालय में प्रेस वार्ता के जरिए समान नागरिकता कानून के लागू होने को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सारी कवायद और कोशिशों को बेईमानी और फिजूल बताया।
गरिमा दसौनी ने कहा के पूरे मामले को समझने के लिए हमें संविधान का आर्टिकल 254 (1)और (2)समझना जरूरी है।
गरिमा दसौनी ने कहा अव्वल तो यह विषय समवर्ती सूची का है, अर्थात इस विषय पर केन्द्र और राज्य दोनो ही कानून बना सकते है, किंतु संविधान का अनुच्छेद 254 (1 )बताता है जब कभी केन्द्र कानून बनायेगा तो वही अंब्रेला लॉ होगा, तब राज्यों के बने कानून निष्प्रभावी होंगे या विलय हो जाएंगे।
गरिमा दसौनी ने कहा की सवाल ये उठता है कि जब केंद्र की मोदी सरकार दो बार इस बात को स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि हम पूरे देश में समान नागरिक संहिता यानी कि यूसीसी लागू करेंगे तो ऐसे में उत्तराखंड की धामी सरकार यूसीसी को लेकर बेमतलब एक्सरसाइज क्यों कर रही है ??केंद्र ने यह स्पष्ट कर दिया है की आने वाले मानसून सत्र में जो कि 20 जुलाई से प्रस्तावित है उसमे केंद्र सरकार यूसीसी का बिल सदन के पटल पर लाने जा रही है और बहुत मुमकिन है कि वह बहुमत से पारित भी हो जाएगा तो संविधान के अनुच्छेद 254(1) के अनुसार उत्तराखंड का यूसीसी निष्प्रभावी हो जाएगा ।
वहीं संविधान का अनुच्छेद 254 (2 )कहता है कि यदि उत्तराखंड को केंद्र के कानून की जगह पर अपने बनाए कानून को ही उत्तराखंड में लागू करना है तो उसके लिए उत्तराखंड के यूसीसी को पारित करने के लिए पहले विधानसभा में पेश करना होगा विधानसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति का अनुमोदन अनिवार्य है ,क्योंकि यह सामान्य कानून नहीं है इसलिए ऑर्डिनेंस के थ्रू पास नहीं हो सकता इसे राष्ट्रपति के पास भेजना ही पड़ेगा।
इस पूरी एक्सरसाइज में उत्तराखंड सरकार को समय लगेगा और तब तक केंद्र यूसीसी लागू कर चुका होगा। वहीं दूसरी ओर अगर उत्तराखंड अपने वहां यूसीसी लागू कर भी देता है तो क्या उत्तराखंड का यूसीसी देश के बाकी राज्यों को मान्य होगा?
दसौनी ने कहा की बड़ा सवाल ये उठता है कि धामी सरकार क्यों यूसीसी की इतनी डुगडुगी पीट रही है और प्रदेश के बाकी सारे मुद्दों को अनदेखा कर आजकल प्रदेश में सिर्फ यूसीसी की बात ही क्यों हो रही है?
वह इसलिए क्योंकि भाजपा का उद्देश्य बाकी सारे मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना है ताकि देश और प्रदेश की जनता महंगाई बेरोजगारी भ्रष्टाचार भर्ती घोटाले अंकिता भंडारी हत्याकांड ,भू कानून इत्यादि पर कोई सवाल ही ना पूछ पाए।
दसौनी ने कहा कि इतना ही नहीं संविधान किसी भी राज्य के पहले से चले आ रहे ट्रेडिशन,कस्टम्स और कल्चर को सेफगार्ड करने की गारंटी अपने कई आर्टिकल्स में देता है। उदाहरण के तौर पर संविधान का 73rd अमेंडमेंट जो पंचायती राज को लेकर था वह नॉर्थ ईस्ट में लागू नहीं हो पाया इसलिए क्योंकि नॉर्थ ईस्ट में अपने पंचायती कानून चलते हैं और उनकी अपनी पंचायतें हैं । इसलिए संविधान का 73वा संशोधन उत्तर पूर्वी राज्यों पर थोपा नहीं जा सका।
भारत में गोवा राज्य के अलावा कहीं भी यह कानून लागू नहीं है। गोवा में भी तब लागू हुआ था जब गोवा भारत का हिस्सा नहीं था (1961)
दसोनी ने कहा कि राज्य व केंद्र सरकार को चाहिए कि वे सभी हितधारको को भरोसे में लिए बिना समान नागरिक संहिता को थोपे नहीं, यदि समाज के सभी वर्ग/हितधारक स्वीकार करे तो ही इसे अपनाए, यह स्वैच्छिक होना चाहिए अनिवार्य नहीं, जबरन थोपने से देश का सामाजिक ताना बाना यानी नेशनल फैब्रिक बिगड़ सकता है, और न्यायालयो में वादों की संख्या घटने के बजाय बढ़ेगी, अनेकों कानूनों को संसद द्वारा रद्द करना होगा, या उनमें आमूल चूल परिवर्तन करना होगा, यह एक जटिल कार्य है, इसमें हमारे संविधान की उद्देशिका के मूलभूत सिद्धांत प्रभुत्तसम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथ निरपेक्ष, समाजवाद, अखंडता, न्याय, स्वतंत्रता, बंधुत्व, समानता, आदि को ठेस पहुंच सकती है।
यह विषय सर्वदलीय, सर्वपक्षीय , विधि के जानकारों समाज के प्रबुद्ध नागरिको से विमर्श के बाद लोक सभा, राज्य सभा में व्यापक परिचर्चा होनी चाहिए ।
राज्यों में तो यह केवल समय की बर्बादी और समाजिक ताने बाने में उथल पुथल मचा कर सौहार्द बिगड़ने और विधि के शासन की भावना को ठेस पहुंचाने जैसा ही है।