देहरादून : दून कल्चरल एण्ड लिटरेरी सोसाइटी द्वारा वेल्हम ब्वॉयज स्कूल, देहरादून में क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन की शुरुआत आकर्षक सत्र ‘जासूसी थ्रिलर’ के साथ हुई.
“खाकी में इंसान” विषय पर आयोजित सत्र में डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि ड्यूटी के दौरान विभिन्न घटनाओं से प्रेरित एवं पुलिस की छवि में परिवर्तन करने के लिए पुस्तक लिखने का विचार आया। उन्होनें बताया कि गरीब एवं पीडित व्यक्ति के लिए पीडित केंद्रित पुलिस पर जोर देना जरुरी है। उन्होने कहा कि पुलिस को ट्रिपल पॉवर (यूनिफार्म, वेपन एवं कानून) का सदुपयोग करना चाहिए, पुलिसिंग मानव संवेदनशीलता पर केन्द्रित होनी चाहिए।
पैनलिस्ट वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, देहरादून अजय सिंह ने कहा कि किताब से रोजमर्रा की पुलिसिंग में सहायता मिलती है, साथ ही सिस्टम को सुधारने के लिए किसी एक को आगे रहकर नेतृत्व करना होता है।
एसएसपी अजय सिंह ने कहा कि अगर इंसान में इंसान होता है तो खाकी में भी इंसान होता है बस डिपेंड करता है कि वह किस परिवेश से आया है किस जगह से आया है और किस माहौल और कल्चर से आया है जो उसकी नोकरी में रिफ्लेक्ट होता है। एसएसपी ने कहा कि हर इंसान में कमी होती है लेकिन उसे सुधारा जा सकता है्। हम चाहेंगे हर पुलिसकर्मी इंसान की तरह रहे और उनका रोल मॉडल हो। जैसे रामराज्य में राम हमारे रोल मॉडल थे।
बदलते समाज और जमाने मे खाकी की भूमिका में भी बदलाव आते है,जिसके तहत उनकी कार्यशैली, कार्यक्षमता, कार्यवाही में भी बदलाव देखने को मिलते है। देखा जाए तो जैसे जैसे आम जनता की खाकी से अपेक्षा होती है वैसे वैसे खाकी को अपने आपको ढालना होता है,यह कहना है पुलिस कप्तान देहरादून अजय सिंह का। जिनके द्वारा राजधानी की कमान संभालने के बाद राजधानी में बढ़ते साइबर अपराधों, स्ट्रीट क्राइम, लूट आदि अपराधों के अनुरूप अपनी टीम को ढालने को कमर कसी हुई है,जिसके निश्चित ही बेहतर परिणाम होंगे यह उन्हें उम्मीद है। उन्होंने कहा है कि खाकी में इंसान का होना मुश्किल नही।
राजधानी देहरादून द्वारा हाल ही में अपने तरीके का देश का पहले क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया,जिसमे क्राइम मूवी लेखक, फ़िल्म निर्माता,सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, क्राइम रिपोर्टर्स आदि के 40 पेनालिस्ट द्वारा शिरकत करते हुए पुलिस और क्राइम के बीच के रिश्तों का अपने अपने विचारों में व्याख्यान किया। उक्त कार्यक्रम की थीम ‘ खाकी में इंसान-कितना संभव?’