उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की कड़ी टक्कर है। ये टक्कर सीधे तौर पर सीएम धामी और हरीश रावत के बीच हैं। बता दें कि पीएम मोदी से लेकर शाह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पीठ थपथपा गए और कहा कि आगे ये ही युवा सीएम होंगे तो वहीं कांग्रेस में भी कुछ ऐसा ही हाल है. पूर्व सीएम और वरिष्ठ नेता हरीश रावत को कांग्रेस ने भले ही सीएम के चेहरे के तौर पर मैदान में नहीं उतारा है लेकिन कांग्रेस हरीश रावत की अगुवाई में ही चुनाव लड़ रही है. वहीं दोनों ही नेता एक दूसरे के पड़ोसी हैं.
बता दें कि जहां हरीश रावत लालकुंआ से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं धामी उधमनसिंह नगर की खटीमा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. लिहाजा माना जा रहा है कि दोनों ही नेताओं के इन सीटों पर चुनाव लड़ने का असर आसपास की सीटों पर भी पड़ेगा. पार्टी ने धामी पर दांव खेलकर हरीश रावत के कुमाऊं क्षेत्र की अनदेखी के दांव को भी फेल कर दिया था. क्योंकि अभी तक बीजेपी के ज्यादातर सीएम गढ़वाल क्षेत्र से बने हैं. लिहाजा कांग्रेस इस मुद्दे को जमीन स्तर पर कुमाऊं में बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार कर रही थी. लेकिन बीजेपी ने धामी को राज्य की कमान सौंप कर हरीश रावत और कांग्रेस के दांव को फेल कर दिया.
इन सीटों पर पड़ेगा असर
वहीं सीएम धामी के अपनी सीट खटीमा के चुनाव लड़ने का असर आसपास की अन्य सीटों पर भी देखने को मिलेगा. सीएम धामी के कारण खटीमा के आसपास की नानकमत्ता, किच्छा, सितारगंज और अन्य सीटों पर असर देखने को मिलेगा. गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उधम सिंह नगर जिले की 9 में से 8 सीटों पर कब्जा जमाया था. लिहाजा धामी पर पिछले प्रदर्शन दोहराने का दबाव है.
कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार नैनीताल जिले की लालकुआं सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. जबकि इसी सीट से रावत पिछली बार चुनाव हार चुके हैं. जबकि पहले रावत जिले की ही रामनगर सीट से दावा कर रहे थे और पार्टी ने उन्हें टिकट भी दिया. लेकिन रणजीत सिंह के विरोध के बाद पार्टी उन्हें लालकुआं सीट पर भेजा. असल में कुमाऊं की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले हरीश रावत के लिए रामनगर सीट सुविधाजनक मानी जा रही थी. लेकिन विरोध के बाद उन्हें सीट बदलनी पड़ी. फिलहाल रावत के चुनाव में उतरने के बाद नैनीताल जिले की लालकुआं के साथ ही कालाढूंगी, रामनगर और भीमताल के आसपास की अन्य सीटों पर भी असर देखने को मिलेगा.