विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों को कुछ हुआ तो क्या खुद को माफ कर पाएंगी विधानसभा अध्यक्ष- गरिमा दसौनी

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारी दीप्ति पांडे का हाल-चाल जानने के लिए मंगलवार को उत्तराखंड कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल सीएमआई हास्पिटल पहुंचा। उन्होंने बर्खास्त कर्मचारी दीप्ति पांडे के जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना की तथा आश्वासन दिया कि वे मजबूती से उनके साथ खड़े हैं।

दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कार्मिकों का धरना डेढ़ माह से विधानसभा के बाहर लगातार जारी है। कड़ाके की ठंड में महिला कार्मिक अपने बच्चों के साथ धरना दे रही हैं, जिसके चलते अभी तक कई महिला कार्मिकों का धरना स्थल पर ही स्वास्थ्य खराब हो चुका है। पिछले दिनों महिला कार्मिक दीप्ति पांडे का धरना स्थल पर स्वास्थ्य खराब हो गया और वह वहीं पर बेहोश हो गईं थी। इसके अलावा एक और कार्मिक रश्मि को भी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

दसौनी ने जानकारी देते हुए कहा कि तब से उनका सीएमआई अस्पताल में इलाज चल रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से विधानसभा के बर्खास्त कर्मचारियों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वह बहुत निंदनीय है। विधानसभा अध्यक्ष को कर्मचारियों से वार्ता कर, उनकी मांगों पर विचार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि बिना कोई नोटिस के, बिना सुनवाई के, बिना किसी कसूर के सात साल से काम कर रहे कर्मचारियों को एक झटके में बर्खास्त करना कहीं न कहीं नेचुरल जस्टिस के सिद्धांत के खिलाफ है और कर्मचारियों के साथ घोर नाइंसाफी तथा उनके हितों के साथ कुठाराघात है। दसौनी ने कहा कि इतने वर्षों की उनकी सेवा की एवज में उनकी कहीं तदर्थ नियुक्ति की जानी चाहिए नहीं तो किसी विभाग में उनका समायोजन तो कम से कम किया ही जाना चाहिए ।

दसोनी ने बताया कि आज इन कर्मचारियों के परिवारों के आगे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है ,ऐसे में एक प्रतिष्ठित पद पर नौकरी करने के बाद समाज से मिले मान सम्मान पद,प्रतिष्ठा के बाद आज इनका जो हस्र हुक्मरानों के द्वारा किया जा रहा है वह बहुत ही दुखद है ।दसौनी ने राज्य के विभिन्न विपक्षी दलों एवं कर्मचारी संगठनों से भी विधानसभा के बर्खास्त कर्मचारियों के समर्थन में आने की अपील की है। उन्होंने बर्खास्त कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि वे तन-मन-धन से उनके साथ खड़े हैं।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में 50 हजार से अधिक कर्मचारी तदर्थ एवं संविदा के माध्यम से विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सरकार द्वारा उनके हितों को संरक्षित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं वहीं विधानसभा से तदर्थ कार्मिकों को इस तरह हटाया जाना बहुत चिंता की बात है। आज यह कार्रवाई विधानसभा के कार्मिकों के साथ हुई है, कल किसी अन्य विभाग में की जाएगी। उत्तराखंड में यह पहली बार हुआ है जब संविदा या तदर्थ कार्मिकों को हटाया गया हो। दसौनी ने कहा कि सात साल की सेवा लंबी सेवा होती है। कर्मचारी पाई-पाई जोड़कर अपने परिवार का भरण पोषण करता है तथा बच्चों को पढ़ाता लिखाता है, लेकिन इस तरह किसी कर्मचारी को सड़क पर ले आना बहुत ही निंदनीय है।

बर्खास्त कर्मचारियों ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि आज कई कर्मचारी ओवरऐज हो गए हैं। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें रोजगार कहां मिलेगा। महिला तथा विधवा कर्मचारियों के सम्मुख रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। कई विकलांग कर्मचारी सड़क पर आ गए हैं। बच्चों की स्कूल तथा काॅलेज की फीस देने में कर्मचारी लाचार हैं। अधिसंख्य कर्मचारी किराए के घरों में रह रहे हैं और नौकरी छिन जाने से वे किराए का भुगतान करने में भी असमर्थ हो गए हैं।

कर्मचारियों ने बताया कि उत्तराखंड विधानसभा की नियमावली में तदर्थ कार्मिकों के नियमितीकरण का प्रावधान है। जिसके तहत वर्ष 2013, वर्ष 2014 तथा वर्ष 2016 में किसी का दो साल की सेवा के बाद, किसी का तीन साल की सेवा, किसी का चार, किसी का पांच तथा किसी का छह साल की सेवा के बाद नियमितीकरण किया गया, लेकिन उनकी सात साल की सेवाओं को लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा है। कर्मचारियों ने कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल को बताया कि 2016 में नियुक्त कार्मिकों की नियुक्ति को माननीय उच्च न्यायालय तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही वैध ठहराया जा चुका है, बावजूद इसके उन्हें हटाना उनके साथ नाइंसाफी है।

प्रतिनिधिमंडल ने धैर्य से कर्मचारियों की बातों को सुना और आश्वासन दिया कि जल्द ही वे इस संबंध में माननीय विधानसभा अध्यक्ष तथा माननीय मुख्यमंत्री जी से वार्ता करेंगे। प्रतिनिधिमंडल में संगठन महामंत्री विजय सारस्वत मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी राजनीतिक सलाहकार अमरजीत सिंह एवं प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट शामिल रहे

इस दौरान बर्खास्त कार्मिक भगवती, बबीता भंडारी, अनिल नैनवाल, मोनिक सेमवाल, रश्मि सेमवाल, आदि भी उपस्थित रहे।

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