कोरोना की तीसरी लहर के अलर्टके बीच दुनिया में एक और खतरनाक वायरस ने दस्तक दे दी है। जी हां इसका नाम है मारबर्ग जो की कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है। आपको बता दें कि पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में अधिकारियों ने मारबर्ग बीमारी के पहले मामले की पुष्टि कर दी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी जानकारी दी है.
वायरस से एक की मौत
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार WHO ने बताया है कि मारबर्ग वायरस की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई है. ये बीमारी इबोला के समान है. इस तरह ये यह पहली बार है कि पश्चिम अफ्रीका में इस घातक बीमारी की पहचान की गई है. 1967 से अब तक 12 प्रमुख मारबर्ग प्रकोप देखने को मिले हैं. लेकिन ज्यादातर प्रकोप दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में सामने आए थे. मारबर्ग वायरस के पुष्टि ऐसे समय पर हुई है, जब दो महीने पहले ही WHO ने ऐलान किया कि गिनी में इबोला का दूसरा प्रकोप खत्म हो चुका है. बता दें कि गिनी में पहला मामला पिछले हफ्ते सामने आय़ा।
चमगादड़ों से फैलता है वायरस
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि मारबर्ग वायरस आमतौर पर रौसेटस चमगादड़ की गुफाओं से जुड़ा होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार इसका संक्रमण संक्रमित लोगों के शारीरिक तरल पदार्थ, या दूषित सतहों और सामग्रियों के संपर्क में आने से फैलता है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि हम गिनी के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा सतर्कता और त्वरित जांच कार्रवाई की सराहना करते हैं।
ये है लक्षण
मारबर्ग वायरस के लक्षणों में तेज बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, दर्द, दस्त, पेट में दर्द, ऐंठन, मतली और उल्टी शामिल हैं. दस्त एक सप्ताह तक हो सकता है.
मारबर्ग वायरस के जरुरी बिंदू
WHO के मुताबिक, मारबर्ग भी उस वायरस की वजह से होता है, जिसकी वजह से इबोला रोग होता है. ऐसे में दोनों ही वायरस ‘फिलोविरिडे या फाइलोवायरस’ परिवार से आते हैं. इसकी वजह से रक्तस्रावी बुखार होता है और इस वायरस से संक्रमित होने पर मृत्यु दर 88 फीसदी है.
मारबर्ग वायरस का नाम जर्मनी के शहर मारबर्ग के नाम पर रखा गया है, जहां ये 1967 में सबसे पहले सामने आया था. इसी साल जर्मनी के फ्रैंकफर्ट, वर्तमान सर्बिया के बेलग्रेड में भी मारबर्ग का प्रकोप देखने को मिला था.
रोसैटम चमगादड़ों द्वारा बसाई गई खानों और गुफाओं में लंबा वक्त गुजारने की वजह से इंसान इस वायरस के चपेट में आता है. एक बार संक्रमित होने पर मरीज इस वायरस को खून और शरीर से निकलने वाले तरल के जरिए अन्य लोगों तक पहुंचा सकता है. इसके अलावा, सतह और चीजों के संक्रमित मरीज के शरीर से निकले तरल से गंदा होने के जरिए भी अन्य व्यक्तियों तक ये वायरस पहुंच सकता है.
WHO और US सीडीसी (सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) दोनों के अनुसार, मौजूदा समय में इस बीमारी के लिए कोई भी वैक्सीन या एंटीवायरल दवा नहीं है. हालांकि, तरल पदार्थ दिया जाना सहायक हो सकता है.
इससे पहले, अफ्रीका में मारबर्ग वायरस के मामले अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा से सामने आए थे.